इंकार से इकरार तक
आदित्य सिंहा
10.04.2020
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आलिंगन बेवफा आँसू चुम्बन दर्द का रिश्ता एहसास फ़लक
उल्लास भरा वो पल,
प्रफुल्लित सभी जन,
हर्षित और आनंदित,
विवाहोत्सव में मगन ,
दूर कोने से छम छम,
इक निर्मल तनु यौवन,
निश्चल तत्पर पग संग,
हाथों में शोभती थाल,
हौले हौले विनीत विनीत,
सबको मिठाई बाँट रही ,
चलते चलते पास वो आई,
पर थाल हो गया था खली।
झुका कर ऑंखें खड़ी निःशब्द,
जब मैंने माँगा प्रिय भोज ,
कुछ झेंपती, शर्माती वो भागी,
और पुनः आई मीठा के संग।
अब थी यह मेरी बारी,
खेल शुरू हुआ कुछ नौरंग,
आँखों में डालकर मैंने आँख,
मिष्टान से किया अब इंकार,
और करीब थोड़ा जाकर,
कानों में उसके फुसफुसाकर,
हमने बोला मुझे चाहिए वो मीठा,
जिस पे हक़ हो अब सिर्फ मेरा,
फिर चमकी नैनों में शोख़ी,
और गाल हुए शर्म से लाल ,
लज्ज़ाती वो फिर भागी ,
करती इशारे कुछ आँखों को मार।
अब हर बार जब वो टकराती,
मैं मांग पड़ता अपना सिर्फ अपना,
हर्षित मंद मंद सदा वो ठुकराती,
और उड़ाती रही मेरा चैन।
This poem is in two parts. First art is a sweet denial .... which turns into an agreement in the second part.
This is the first part of poem – a situation when a boy plays with a word (SWEET made only for HIM) in some wedding gathering which is a common situation in Indian wedding functions. The second part is covered
when the girl yields to the demand and confides in him. So the essence of S - Samarpan (Ikrar) would come there.. . Hope you like this simple poetic extravaganza.
10.04.2020
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