Wednesday 27 March 2013

छोटी सी आस


छोटी सी आस 




आज फिर एक छोटी सी आस जागी है,
हथेली में नई लकीरों होने की एहसास जागी है ,
एक कदम जो तुम चल कर आये, 
ज़िन्दगी को नए नाम देने की प्यास जगी है !

गुजले पन्नों को अल्मारी के कोने से निकाल, 
परत दर परत धुल हटाई है हमने,
धूमिल हुए लकीरों को बार बार पढ ,
आँखों में पुरानी तस्वीर सजाई है हमने !

शुष्क आँखों की उस कुम्हलाई तस्वीर को,
आज फिर झरोखे से देखी है हमने , 
नम आँखों की निर्झर निर्मल अश्रु से सींच ,
ओस सी सींची पुलकित प्रफुल्लित पुष्प बनायीं है हमने !

बंद आँखों में सजे वो सपने सुहाने, 
खुले आँखों से जिसे कभी देख न पाई हमने, 
 तेरे नैनों की महज एक मुलाकात से रोशन,
आज सच होने की नई आयाम पाई है हमने!

लौट कर आज फिर उस राह पर हम चले,
जिस दोराहे पे खड़े कभी बिछड़े थे हम, 
कभी जहाँ से स्याह रात में मायूस लौटे हरदम, 
आज पूरी रात आँखों में काट नई सवेरा देखी है हमने!

नया सवेरा, नई रौशनी, नई लकीरें, नए सपने 
तेरे आने से ये सब हो रहे हैं अपने,  
जागी है तमन्नाओं की फिर से आस, 
कि दूं ज़िन्दगी को एक नया नाम, बुझाऊँ इसकी सर्वस्व  प्यास !


आदित्य सिन्हा 


आपको ये भी पसंद आएगा :

       जीवन संध्या         करुण वंदना          Mother - An Epitome of Sacrifice       Soulmate             मैं और मेरी तन्हाई 
                            
   

Tuesday 12 March 2013

मेरी नन्ही सी परी

मेरी नन्ही सी परी


नन्ही सी परी थी तुम, 

फूलों सा  था खिला चेहरा तुम्हारा, 
नाज़ुक सी वो हँसी तुम्हारी, 
और मखमली सा वो स्पर्श तुम्हारा, 






















तुम्हारी बातें, 

वो खयाली रातें, 
अनेक कहानियाँ, 
उलझे सवाल, 
बार बार आना, 
बेतकल्लुफ से, 
अपने में खोये, 
सपने संजोये, 
ख्यालों में भरके, 
गुफ्तगू करके, 
खतों में लिखना, 
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना . 

कभी गुस्से में, 

कभी उलझे से, 
कभी परेशान से, 
कभी खोये से, 
लड़ते, झगड़ते, 
रोते, हँसते, 
मगर चाहत में,
हर बार - अपने से, 
खोए-खोए , 
फिर सारे ज़वाब ख़त में लिखना, 
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना. 

लुट जाने को तैयार, 

सिमट जाने को बेकरार, 
कभी इस मोड़ पर, 
कभी उस डगर पर, 
उलझनों को सुलझाने को, 
भागते, दौड़ते, 
ख़ुद को पहचानने को, 
कभी आईना देखते, 
कभी आईना दिखाते, 
कुछ खामोश सवाल कर जाना, 
कुछ अनकहे ज़वाब का इंतज़ार करना, 
उन सारे खतों में लिखना, 
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना. 

आदर्शों में घिरे, 

एक दुसरे के बारे में सोचते, 
कभी दिल की धड़कनें, 
कभी दिमाग की अटकलें, 
दुसरे को मनाते,
ख़ुद को समझाते, 
मगर कुछ न कहते, 
इंतज़ार करते, 
आंखों में सवाल लिए, 
जवाब को अनजाने करते, 
ख़ुद से झूठ बोलते, 
या खामोश रहते, 
उनको खुश देखने को, 
फिर खामोश से वो ख़त लिखना, 
और प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना. 

दो पल के साथ में, 

खोए - खोए से रहना, 
अपने सवालों में उलझे, 
ऑंखें मिली, मगर पथराये से, 
उन सवालों की उलझनें सिमटाए से, 
लब लड़खडाए, मगर ज़वाब न आना, 
हम साथ चले, मगर खामोशी का न टूट पाना, 
वक्त गुज़रा, विश्वास की मूरत हो जाने को, 
यादों में खो जाने को, 
हम एक दुसरे से जुदा हो गए, 
प्यार को समझाने को, 
फिर इंतज़ार रहा उस धडकनों भरे ख़त का, 
और फिर प्यारी सी छोटी सी परी का बन जाने का. 

वक्त की चाल से, 

लकीरों की मार से, 
अपने सवालों में खोए, 
खामोश से, 
दौड़ते चले हम ज़िन्दगी के साथ, 
समझने को नहीं तैयार, 
हो लिए हम ज़माने के साथ, 
छोड़ कर एक दूसरे का हाथ, 
खुश रहने को, 
खुश रखने को, 
मगर अलविदा न कह सके, 
इंतज़ार रहा फिर मिलने को, 
शायद इंतज़ार फिर वो ख़त की लकीरों का, 
अपनी प्यारी सी, छोटी सी, परी को पाने का. 

ये रिश्ता है विश्वास का, 

बातें है उनके साथ होने का, 
यादों में सिमटे हजारों पलों का, 
पलकों में समाये अनगिनत सपनों का, 
बंधन है दो दिलों का, 
नाज़ुक सी उनकी धडकनों का, 
तभी तो इंतज़ार है रहता, 
जीवन में साथ होने का, 
दो बातें खुशी की, 
कुछ लम्हे ग़म का, 
अपनों का, अपनों के साथ होने का, 
तन्हाई में, भीड़ में, 
हर मोड़ पर बांटने का, 
फिर साथ चाहिए साथी का, 
सभी पलों को उस ख़त में बांटने का, 
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी को पाने का. 

आदित्य सिन्हा 

लखनऊ
मार्च 2009 

यह कविता मेरी हिन्दी भाषा में पहली प्रयास थी जिसे मैने आज से चार साल पहले लखनऊ में लिखा था ! इसे मैंने अपने सुलेखा के ब्लॉग पेज पर दर्ज किया था!  उस ब्लॉग का लिंक निचे प्रस्तुत है !


Though this is one of my old poems - it totally depicts letter in letter writing era - I am linking it to this weeks Indispire edition 55 The Unsent Letters. Weave a story. இڿڰۣ-ڰۣ— #UnsentLetters

http://creative.sulekha.com/meri-nanhi-si-pari-in-hindi_73982_blog

Sunday 10 March 2013

सृजन


सृजन 





ये संसार है परसपर नारी का योगदान, 
निरंतर करें हम इनका सम्मान, 
मत भूलें ये उनकी है सहर्ष बलिदान,
हमें जो वो देती हैं करने को अभिमान !

जन्म दे वह  मातृत्व है सिखलाती,
हर मोड़ पर त्याग  है कर जाती,
चरम पर लहराता योवन को दे चुनौती ,
हमें है इस जग से अवलोकिक करवाती!

सूनी से आँगन में नन्ही किलकारी जगाती, 
तोतली सी बोली में हमें प्रधान वह बनाती,
कच्चे धागे के बन्धन में विश्वास सिखलाती,
वक़्त पड़े तो बाग़ डोर भी है वो थामती!

अलसाती सुबह में अंगराईयां वह भर जाती,
आवारा मन को प्रतन्चाया पर कर जाती,
खुश्क सन्ध्या में सर्द समीर का एहसास कराती,
काली रातों में भी चांदनी से पहचान  वह करवाती!

सात फेरों  को  परम मान वो सब त्याग है कर जाती,
जन्म के बन्धन परे छोड़, पराया आँगन हर्श से है अपनाती,
कल की नन्ही छांव वो,  चंद वचन में नया संसार बनाती, 
अपना कल त्याग कर, हम़ारा कल को वो है संव़ारती! 

कमजोर  नहीं, वह मूरत है निरंतर बलिदान की, 
समर्पित वो अपनों को, संकल्पित  है वचनों की,
हर मोर पर साथ देती,  समुंदर है आलोकिक प्यार की,  
भावना के नर्म दरिया की, सृजन है वो इस संसार की!


आदित्य सिन्हा 
धर्मशाला