मेरी नन्ही सी परी
नन्ही सी परी थी तुम,
फूलों सा था खिला चेहरा तुम्हारा,
नाज़ुक सी वो हँसी तुम्हारी,
और मखमली सा वो स्पर्श तुम्हारा,
तुम्हारी बातें,
वो खयाली रातें,
अनेक कहानियाँ,
उलझे सवाल,
बार बार आना,
बेतकल्लुफ से,
अपने में खोये,
सपने संजोये,
ख्यालों में भरके,
गुफ्तगू करके,
खतों में लिखना,
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना .
कभी गुस्से में,
कभी उलझे से,
कभी परेशान से,
कभी खोये से,
लड़ते, झगड़ते,
रोते, हँसते,
मगर चाहत में,
हर बार - अपने से,
खोए-खोए ,
फिर सारे ज़वाब ख़त में लिखना,
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना.
लुट जाने को तैयार,
सिमट जाने को बेकरार,
कभी इस मोड़ पर,
कभी उस डगर पर,
उलझनों को सुलझाने को,
भागते, दौड़ते,
ख़ुद को पहचानने को,
कभी आईना देखते,
कभी आईना दिखाते,
कुछ खामोश सवाल कर जाना,
कुछ अनकहे ज़वाब का इंतज़ार करना,
उन सारे खतों में लिखना,
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना.
आदर्शों में घिरे,
एक दुसरे के बारे में सोचते,
कभी दिल की धड़कनें,
कभी दिमाग की अटकलें,
दुसरे को मनाते,
ख़ुद को समझाते,
मगर कुछ न कहते,
इंतज़ार करते,
आंखों में सवाल लिए,
जवाब को अनजाने करते,
ख़ुद से झूठ बोलते,
या खामोश रहते,
उनको खुश देखने को,
फिर खामोश से वो ख़त लिखना,
और प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना.
दो पल के साथ में,
खोए - खोए से रहना,
अपने सवालों में उलझे,
ऑंखें मिली, मगर पथराये से,
उन सवालों की उलझनें सिमटाए से,
लब लड़खडाए, मगर ज़वाब न आना,
हम साथ चले, मगर खामोशी का न टूट पाना,
वक्त गुज़रा, विश्वास की मूरत हो जाने को,
यादों में खो जाने को,
हम एक दुसरे से जुदा हो गए,
प्यार को समझाने को,
फिर इंतज़ार रहा उस धडकनों भरे ख़त का,
और फिर प्यारी सी छोटी सी परी का बन जाने का.
वक्त की चाल से,
लकीरों की मार से,
अपने सवालों में खोए,
खामोश से,
दौड़ते चले हम ज़िन्दगी के साथ,
समझने को नहीं तैयार,
हो लिए हम ज़माने के साथ,
छोड़ कर एक दूसरे का हाथ,
खुश रहने को,
खुश रखने को,
मगर अलविदा न कह सके,
इंतज़ार रहा फिर मिलने को,
शायद इंतज़ार फिर वो ख़त की लकीरों का,
अपनी प्यारी सी, छोटी सी, परी को पाने का.
ये रिश्ता है विश्वास का,
बातें है उनके साथ होने का,
यादों में सिमटे हजारों पलों का,
पलकों में समाये अनगिनत सपनों का,
बंधन है दो दिलों का,
नाज़ुक सी उनकी धडकनों का,
तभी तो इंतज़ार है रहता,
जीवन में साथ होने का,
दो बातें खुशी की,
कुछ लम्हे ग़म का,
अपनों का, अपनों के साथ होने का,
तन्हाई में, भीड़ में,
हर मोड़ पर बांटने का,
फिर साथ चाहिए साथी का,
सभी पलों को उस ख़त में बांटने का,
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी को पाने का.
आदित्य सिन्हा
लखनऊ
मार्च 2009
यह कविता मेरी हिन्दी भाषा में पहली प्रयास थी जिसे मैने आज से चार साल पहले लखनऊ में लिखा था ! इसे मैंने अपने सुलेखा के ब्लॉग पेज पर दर्ज किया था! उस ब्लॉग का लिंक निचे प्रस्तुत है !
Though this is one of my old poems - it totally depicts letter in letter writing era - I am linking it to this weeks Indispire edition 55 The Unsent Letters. Weave a story. இڿڰۣ-ڰۣ— #UnsentLetters
http://creative.sulekha.com/meri-nanhi-si-pari-in-hindi_73982_blog
नन्ही सी परी थी तुम,
फूलों सा था खिला चेहरा तुम्हारा,
नाज़ुक सी वो हँसी तुम्हारी,
और मखमली सा वो स्पर्श तुम्हारा,
तुम्हारी बातें,
वो खयाली रातें,
अनेक कहानियाँ,
उलझे सवाल,
बार बार आना,
बेतकल्लुफ से,
अपने में खोये,
सपने संजोये,
ख्यालों में भरके,
गुफ्तगू करके,
खतों में लिखना,
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना .
कभी गुस्से में,
कभी उलझे से,
कभी परेशान से,
कभी खोये से,
लड़ते, झगड़ते,
रोते, हँसते,
मगर चाहत में,
हर बार - अपने से,
खोए-खोए ,
फिर सारे ज़वाब ख़त में लिखना,
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना.
लुट जाने को तैयार,
सिमट जाने को बेकरार,
कभी इस मोड़ पर,
कभी उस डगर पर,
उलझनों को सुलझाने को,
भागते, दौड़ते,
ख़ुद को पहचानने को,
कभी आईना देखते,
कभी आईना दिखाते,
कुछ खामोश सवाल कर जाना,
कुछ अनकहे ज़वाब का इंतज़ार करना,
उन सारे खतों में लिखना,
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना.
आदर्शों में घिरे,
एक दुसरे के बारे में सोचते,
कभी दिल की धड़कनें,
कभी दिमाग की अटकलें,
दुसरे को मनाते,
ख़ुद को समझाते,
मगर कुछ न कहते,
इंतज़ार करते,
आंखों में सवाल लिए,
जवाब को अनजाने करते,
ख़ुद से झूठ बोलते,
या खामोश रहते,
उनको खुश देखने को,
फिर खामोश से वो ख़त लिखना,
और प्यारी सी, छोटी सी, परी बन जाना.
दो पल के साथ में,
खोए - खोए से रहना,
अपने सवालों में उलझे,
ऑंखें मिली, मगर पथराये से,
उन सवालों की उलझनें सिमटाए से,
लब लड़खडाए, मगर ज़वाब न आना,
हम साथ चले, मगर खामोशी का न टूट पाना,
वक्त गुज़रा, विश्वास की मूरत हो जाने को,
यादों में खो जाने को,
हम एक दुसरे से जुदा हो गए,
प्यार को समझाने को,
फिर इंतज़ार रहा उस धडकनों भरे ख़त का,
और फिर प्यारी सी छोटी सी परी का बन जाने का.
वक्त की चाल से,
लकीरों की मार से,
अपने सवालों में खोए,
खामोश से,
दौड़ते चले हम ज़िन्दगी के साथ,
समझने को नहीं तैयार,
हो लिए हम ज़माने के साथ,
छोड़ कर एक दूसरे का हाथ,
खुश रहने को,
खुश रखने को,
मगर अलविदा न कह सके,
इंतज़ार रहा फिर मिलने को,
शायद इंतज़ार फिर वो ख़त की लकीरों का,
अपनी प्यारी सी, छोटी सी, परी को पाने का.
ये रिश्ता है विश्वास का,
बातें है उनके साथ होने का,
यादों में सिमटे हजारों पलों का,
पलकों में समाये अनगिनत सपनों का,
बंधन है दो दिलों का,
नाज़ुक सी उनकी धडकनों का,
तभी तो इंतज़ार है रहता,
जीवन में साथ होने का,
दो बातें खुशी की,
कुछ लम्हे ग़म का,
अपनों का, अपनों के साथ होने का,
तन्हाई में, भीड़ में,
हर मोड़ पर बांटने का,
फिर साथ चाहिए साथी का,
सभी पलों को उस ख़त में बांटने का,
और फिर प्यारी सी, छोटी सी, परी को पाने का.
आदित्य सिन्हा
लखनऊ
मार्च 2009
यह कविता मेरी हिन्दी भाषा में पहली प्रयास थी जिसे मैने आज से चार साल पहले लखनऊ में लिखा था ! इसे मैंने अपने सुलेखा के ब्लॉग पेज पर दर्ज किया था! उस ब्लॉग का लिंक निचे प्रस्तुत है !
Though this is one of my old poems - it totally depicts letter in letter writing era - I am linking it to this weeks Indispire edition 55 The Unsent Letters. Weave a story. இڿڰۣ-ڰۣ— #UnsentLetters
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