किरण हूँ मैं, कंचन है दिल मेरा
संसार में सब से पृथक,
शीतल तरु की छाँव हो तुम,
उष्म हवा को क्षीण करते,
सावन की फुहार हो तुम ,
क्षितिज पर फैली अरुणिमा जैसे,
सुनहरे कल का संवाद लिए ,
तुम्हारे होने का आभास ही,
तन मन को रोमांच करे।
ये सच है, इसका मतलब,
मुझको तुमसे ही प्यार है ,
मेरा दिल तुमको है चाहता,
और मैं तुम्हारी भी चाहत हूँ,
पर तुम्हारा चाहना ही सब तो नहीं,
मेरी ज़िन्दगी के और भी पहलू हैं,
मैं, मैं तो हूँ, मगर और भी हूँ ,
रिश्ते और भी हैं, बस तुम ही तो नहीं।
किरण हूँ मैं इस घर की,
कंचन बना यहीं दिल मेरा,
जिस तन मन पर मोहित तुम,
गुण अवगुण सब यहीं ढला ,
उस मां के आँचल की आज हया मैं ,
अपने पापा के सर की स्वर्णिम ताज़ मैं,
अनुजों की श्रद्धा की मैं अभिमान हूँ ,
अग्रजों की सम्मान की मै ही स्वाभिमान हूँ,
अब इक तेरे प्यार में खोकर,
कैसे बहक जाऊं फिर मैं ?
तेरे आभा में मैं घुलकर ,
कैसे अंधकार कर जाऊं मैं?
अपनी एक नूतन परिणय हेतु ,
रक्त सम्बन्ध कैसे भूल जाऊं मैं ?
आख़िर, किरण हूँ मैं इस घर की,
कंचन बना है यहीं दिल मेरा।
आख़िर, किरण हूँ मैं इस घर की,
कंचन बना है यहीं दिल मेरा।
आदित्य सिन्हा
13. 04 . 2020
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