एहसास
कोरे दिल पे लिख गया ज़ब नाम तेरा,
तू हाँ कर या ना कर, ये तेरी मर्ज़ी,
खुदा ने रूबरू कराने से पहले,
न रज़ा मांगी थी न दी थी अर्ज़ी।
फकत, गुस्ताख़ मैं फिर कैसे,
गुनाह कुदरत ने जब फ़रमाई,
चिलमन के झरोखे से झांका तुमने,
नज़रों ने नज़रों संग ली अंगड़ाई।
तुम्हें बुलाया न कभी छत पर मैंने,
मुंडेरे पे झटका लटों को तुमने,
और फ़िज़ां को कर के मदहोश तुमने,
हर बार लूट गई थी होश तुम मेरे।
चांदनी रातों में पूनम के सामने,
मखमली स्वर में तुम गुनगुनाए थे,
दिल में बजाई थी तुमने शहनाई,
और वादियों में तरन्नुम तुम लहराए
जगा कर हसरथों को अनायास,
मुड़ के आज तुम चले जाते हो ,
पास होकर भी तुम मेरे
अब पास नहीं आते हो।
तेरे रवैया से तकल्लुफ नहीं आदि,
इतना बस इज़ाज़त बख्श दे मुझे,
महज़ एक एहसास तेरे होने का,
सदा के लिए नाम कर दे मेरे।
आदित्य सिन्हा
06. 04. 2020
कोरे दिल पे लिख गया ज़ब नाम तेरा,
तू हाँ कर या ना कर, ये तेरी मर्ज़ी,
खुदा ने रूबरू कराने से पहले,
न रज़ा मांगी थी न दी थी अर्ज़ी।
फकत, गुस्ताख़ मैं फिर कैसे,
गुनाह कुदरत ने जब फ़रमाई,
चिलमन के झरोखे से झांका तुमने,
नज़रों ने नज़रों संग ली अंगड़ाई।
तुम्हें बुलाया न कभी छत पर मैंने,
मुंडेरे पे झटका लटों को तुमने,
और फ़िज़ां को कर के मदहोश तुमने,
हर बार लूट गई थी होश तुम मेरे।
चांदनी रातों में पूनम के सामने,
मखमली स्वर में तुम गुनगुनाए थे,
दिल में बजाई थी तुमने शहनाई,
और वादियों में तरन्नुम तुम लहराए
जगा कर हसरथों को अनायास,
मुड़ के आज तुम चले जाते हो ,
पास होकर भी तुम मेरे
अब पास नहीं आते हो।
तेरे रवैया से तकल्लुफ नहीं आदि,
इतना बस इज़ाज़त बख्श दे मुझे,
महज़ एक एहसास तेरे होने का,
सदा के लिए नाम कर दे मेरे।
आदित्य सिन्हा
06. 04. 2020
No comments:
Post a Comment