Tuesday, 7 April 2020

फलक - F for Falak

    फलक 



    







क्या जल्दी पड़ी थी ऐ चाँद तुझे,
चार पहर पूरी थी अभी रात बाकी, 
अभी तो महज़ उसके पेहलू में हम थे बैठ,
ज़ुल्फ़ों संग हमने ली अंगड़ाई थी,

रात की स्याह शीतल में घुल कर, 
फैली थी खुशबू हवा के संग मिल कर, 
बाँहों में ज्यों भरा था उसने झुक कर 
सांसों ने सांसों के संग गर्मायी थी ,

और पिघलने को हम जो रह गए थे
ऐ चाँद तूने हसरथ में खलल डाली,
कसक सितारें को बुनने की बस रह गई,
फलक पे जो तूने चांदनी बिखेर डाली।



आदित्य सिन्हा 
07. 04 . 2020 

No comments:

Post a Comment