Thursday, 27 November 2014

मेरी प्रेरणा स्रोत



मेरी प्रेरणा स्रोत 












हाथों में जब भी आती लेखनी मेरी,                                    
पलकें होने लगते हैं मंद बंद,
उभर आती  सहस छवि उनकी,                              
थिरक उठते होठों  पे चंद छंद,
         
            हाँ ! जब भी होती चर्चा प्रेरणा की ,
            स्रोत होती यही मेरी अंतः चेतना की।

हवाओं में आती फिर खुशबू भीनी,

सर्द सांसें हो जाती है गर्म,
मगज मेरे स्वतः हो जाते धीर,
यादों के साये हो उठते रौशन,

            हाँ ! जब भी होती चर्चा प्रेरणा की ,

            स्रोत होती यही मेरी अंतः चेतना की।          

मदमस्त झूमती तब अविरल नदियां,

रचती संग  अगणित दिव्य सरगम, 
कोकिल कंठ की होती मृदु वर्षा,
मुग्ध होता मन, हर जाता तन मन , 

              हाँ ! जब भी होती चर्चा प्रेरणा की ,
             स्रोत होती यही मेरी अंतः चेतना की।  

बाहें फैलाती फिर वो वादियां,

समाती जाती पुलकित चितवन, 
स्पर्श महज़  होता होठों का नर्म ,
और घुलती बदन, कुम्हलाते यौवन, 

             हाँ ! जब भी होती चर्चा प्रेरणा की ,

            स्रोत होती यही मेरी अंतः चेतना की।

पहेली बनता फिर ये असीम जहाँ, 

खोता जाता हर दिल धड़कन, 
बेतकल्लुफ़ अदाएं, अनजाने वचन,
और बढ़ता  गम , टूटता प्रत्यय मन, 

             हाँ ! जब भी होती चर्चा प्रेरणा की ,

            स्रोत होती यही मेरी अंतः चेतना की।
            हाँ !  यही होती स्रोत मेरी अंतः चेतना की।
            हाँ !  यही होती स्रोत मेरी अंतः चेतना की।


आदित्य सिन्हा 
26 . 11 . 2014 
अलीगढ़ 

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