Wednesday, 22 April 2020

समर्पण (S - Samarpan)

समर्पण (S - Samarpan)



#AtoZChallenge 2020 Blogging from A to Z Challenge letter S

आदित्य सिन्हा
22.04.2020

Tuesday, 21 April 2020

रेत की पहाड़ ( R- Ret ki pahad)

रेत की पहाड़ ( R- Ret ki pahad)



आदित्य सिन्हा 

Monday, 20 April 2020

Saturday, 18 April 2020

Friday, 17 April 2020

O- Os ki Bundein

ओस की बूँदें (O- Os ki Bundein)




आदित्य सिन्हा 
17 . 04 . 2020 



Thursday, 16 April 2020

नव यौवन ( N - Nav Yovan)

नव यौवन  ( N - Nav Yovan)




#AtoZChallenge 2020 Blogging from A to Z Challenge letter N




         नन्ही कली सी मैं ,         
पंखुड़ी में सिमटी,
सीली सिली शबनम,
बैरी बसंती बयार,
मद्धिम सी किरण,
कुसुम की सुगन्ध,
मँडराता एक भौंरा, 
एक प्यारा बोसा,

ओह ! क्या किया तूने,

मदमस्त मैं झूमी ,
अलसाती अँगड़ाती,
बेखबर इठलाती,
बेतकल्लुफ सी ,
नैनों में भर चमक,
नया हया अब, 
होठों पे लहराए, 
अब नयी शोखी,

ओह! क्या किया तूने,

अंग अंग अब झूमे,
करे क्रीड़ा कलरव,
पंखुड़ी खिल खिल जाये,
नव रस का करे पान,
आगोश व आलिंगन, 
अब जागे नव चेतन, 
अनुभूति है ये नूतन,
रचा तूने नव यौवन। 



ओह! क्या किया तूने। 

आदित्य सिन्हा 

16 .04 . 2020 

Wednesday, 15 April 2020

माँ - M for mother


माँ  - M for Mother




#AtoZChallenge 2020 Blogging from A to Z Challenge letter M



Mom - thou art an Epitome of Sacrifice,
For you renounced all that thee cherished and once adorned,
Willingly and wishfully you decided to pay a matchless price,
To give me a being and bring me on this cosmic ground.

The very moment you bore me inside,
With ecstasy abound and dreams profound,
You trounced thy obsession for figure and stride,
And forwent the acrobats, starves, and parties around.

To marvel my tiny figurine in your celestial lap,
And embrace thy breast with notion divine,
You dispelled the fear of uncertainty in labor nap,
And relinquished all anxiety, apprehension and anguish in line.

For placid massage on my tender limbs,
With committed passion and conviction in firm stance,             
You parted your crush for Dad without grumble,
And bid adieu to craves, aches, lust and romance.

All through the night to pray and bring a sound slumber,
Instill chaste moral, deeper thoughts and dreams sweet,
You declined your sleeps, the bash and coveted endeavor,
And won over lulls and dulls, grief and grudge to moments of treat.

To abundance my path with ease, nurture my career swing,
And witness me scale the world’s venerated heights,                
You dumped your profession when on pinnacle thriving,
And mentored thy skills to my prospects with grits.

To enrich me with jewels in life at all time,
And cater to innumerable demands huge or wee,        `       
You yielded your aspirations through youth and prime,
And glimpse thou prudent dreams come true in me.

Even to experience me grow to the parenthood,
And live life with generations approach apart,
You resigned ideals, ideologies and institutions that stiffly stood,
And transformed to modern mood, lest my life thwart.

Revered thus thou stand an Epitome of Sacrifice,
For you renounced all that thee cherished and once adorned,
Perpetually, plentifully, persistently you paid an unparalleled price,
To make me a being and to put me to zenith all round.

Tuesday, 14 April 2020

लज़्जा L - Lazza

लज़्जा ( L - Lazza)




आदित्य सिन्हा 
14 . 04 . 2020 

Monday, 13 April 2020

किरण हूँ मैं,कंचन है दिल मेरा

किरण हूँ मैं, कंचन है दिल मेरा 





#AtoZChallenge 2020 Blogging from A to Z Challenge letter K



संसार में सब से पृथक,
शीतल तरु की छाँव हो तुम,
उष्म हवा को क्षीण करते, 
सावन की फुहार हो तुम , 
क्षितिज पर फैली अरुणिमा जैसे,
सुनहरे कल का संवाद लिए ,
तुम्हारे होने का आभास ही,               
तन मन को रोमांच करे।             

ये सच है, इसका मतलब,
मुझको तुमसे ही  प्यार है ,
मेरा दिल तुमको है चाहता,
और मैं तुम्हारी भी चाहत हूँ,                
पर तुम्हारा चाहना ही सब तो नहीं,
मेरी ज़िन्दगी के और भी पहलू हैं,
मैं, मैं तो हूँ, मगर और भी हूँ ,
रिश्ते और भी हैं, बस तुम ही तो नहीं।

किरण हूँ मैं इस घर की,
कंचन बना यहीं दिल मेरा,
जिस तन मन पर मोहित तुम, 
गुण अवगुण सब यहीं ढला ,
उस मां के आँचल की आज हया मैं ,
अपने पापा के सर की स्वर्णिम ताज़ मैं,
अनुजों की श्रद्धा की मैं अभिमान हूँ ,
अग्रजों की सम्मान की मै ही स्वाभिमान हूँ,

अब इक तेरे प्यार में खोकर,
कैसे बहक जाऊं फिर मैं ?
तेरे आभा में मैं घुलकर ,
कैसे अंधकार कर जाऊं मैं?
अपनी एक नूतन परिणय हेतु ,
रक्त सम्बन्ध कैसे भूल जाऊं मैं ?
आख़िर, किरण हूँ मैं इस घर की,
कंचन बना है यहीं दिल मेरा।

आख़िर, किरण हूँ मैं इस घर की,
कंचन बना है यहीं दिल मेरा।


आदित्य सिन्हा 
13. 04 . 2020 

Other Poems in A to Z Challenge :

 आलिंगन       बेवफा ऑंसू           चुंबन                       
आलिंगन                    बेवफा आँसू       चुम्बन             दर्द का रिश्ता                    एहसास                         फ़लक

    
इनकार से इक़रार तक
     
Other Genres in the Challenge : 





Saturday, 11 April 2020

Friday, 10 April 2020

इंकार से इकरार तक (I -Inkaar Se Ikrar tak)

इंकार से इकरार तक 







उल्लास भरा वो पल,
प्रफुल्लित सभी जन,
हर्षित और आनंदित,
विवाहोत्सव में मगन ,

दूर कोने से छम छम,
इक निर्मल तनु यौवन,
निश्चल तत्पर पग संग,
हाथों में शोभती थाल,  

हौले हौले विनीत विनीत,
सबको मिठाई बाँट रही , 
चलते चलते पास वो आई,
पर थाल हो गया था खली। 

झुका कर ऑंखें खड़ी निःशब्द,
जब मैंने माँगा प्रिय भोज ,
कुछ झेंपती, शर्माती वो भागी,
और पुनः आई मीठा के संग। 

अब थी यह मेरी बारी,
खेल शुरू हुआ कुछ नौरंग, 
आँखों में डालकर मैंने आँख,
मिष्टान से किया अब इंकार,

और करीब थोड़ा जाकर,
कानों में उसके फुसफुसाकर,
हमने बोला मुझे चाहिए वो मीठा,
जिस पे हक़ हो अब सिर्फ मेरा,

फिर चमकी  नैनों में शोख़ी,
और गाल हुए शर्म से लाल  ,
लज्ज़ाती वो फिर भागी ,
करती इशारे कुछ आँखों को मार।  

अब हर बार जब वो टकराती,
मैं मांग पड़ता अपना सिर्फ अपना,
हर्षित मंद मंद सदा वो ठुकराती,
और उड़ाती रही मेरा चैन।   

This poem is in two parts. First art is a sweet denial .... which turns into an agreement in the second part.

This is the first part of poem – a situation when a boy plays with a word (SWEET made only for HIM) in some wedding gathering which is a common situation in Indian wedding functions. The second part is covered 
when the girl yields to the demand and confides in him. So the essence of S - Samarpan (Ikrar) would come there.. . Hope you like this simple poetic extravaganza.


आदित्य सिंहा
 10.04.2020

Other Poems in A to Z Challenge :

 आलिंगन       बेवफा ऑंसू           चुंबन              
आलिंगन         बेवफा आँसू       चुम्बन       दर्द का रिश्ता            एहसास                   फ़लक
     
Other Genres in the Challenge : 


Thursday, 9 April 2020

Tuesday, 7 April 2020

फलक - F for Falak

    फलक 



    







क्या जल्दी पड़ी थी ऐ चाँद तुझे,
चार पहर पूरी थी अभी रात बाकी, 
अभी तो महज़ उसके पेहलू में हम थे बैठ,
ज़ुल्फ़ों संग हमने ली अंगड़ाई थी,

रात की स्याह शीतल में घुल कर, 
फैली थी खुशबू हवा के संग मिल कर, 
बाँहों में ज्यों भरा था उसने झुक कर 
सांसों ने सांसों के संग गर्मायी थी ,

और पिघलने को हम जो रह गए थे
ऐ चाँद तूने हसरथ में खलल डाली,
कसक सितारें को बुनने की बस रह गई,
फलक पे जो तूने चांदनी बिखेर डाली।



आदित्य सिन्हा 
07. 04 . 2020 

Monday, 6 April 2020

E - एहसास (Ehsaas)

एहसास





कोरे दिल पे लिख गया ज़ब नाम तेरा,
तू हाँ कर या ना कर, ये तेरी मर्ज़ी,
खुदा ने रूबरू कराने से पहले,
न रज़ा मांगी थी न दी थी अर्ज़ी।

फकत, गुस्ताख़ मैं फिर कैसे,
गुनाह कुदरत ने जब फ़रमाई,
चिलमन के झरोखे से झांका तुमने,
नज़रों ने नज़रों संग ली अंगड़ाई।

तुम्हें बुलाया न कभी छत पर मैंने,
मुंडेरे पे झटका लटों को तुमने,
और फ़िज़ां को कर के मदहोश तुमने,
हर बार लूट गई थी होश तुम मेरे।

चांदनी रातों में पूनम के सामने,
मखमली स्वर में तुम गुनगुनाए थे,
दिल में बजाई थी तुमने शहनाई,
और वादियों में तरन्नुम तुम लहराए

जगा कर हसरथों को अनायास,
मुड़ के आज तुम चले जाते हो ,
पास होकर भी तुम मेरे
अब पास नहीं आते हो।

तेरे रवैया से तकल्लुफ नहीं आदि,
इतना बस इज़ाज़त बख्श दे मुझे,
महज़ एक एहसास तेरे होने का,
सदा के लिए नाम कर दे मेरे।


आदित्य सिन्हा
06. 04. 2020



Saturday, 4 April 2020

दर्द का रिश्ता - D for Dard ka rishta

दर्द का रिश्ता। 








ख़ुशी। .... 
ख़ुशी के लिए, हम क्यों मरते रहते हैं,
ख़ुशी के लिए - हम क्यों मरते रहते हैं,
दर्द। 
दर्द जब जरूरी है, 
उसका ही रिश्ता सच्चा रिश्ता होता है।
ख़ुशी के लिए, हम क्यों मरते रहते हैं,

माँ। 
माँ बनना है, एक सुखद अनुभूती है ,
गोद भरेगा तभी तो जीवन पूर्ण होगा,
आंगन में किलकारी , मकान तब घर होगा,
पति बाप बनेगा ,खानदान का नाम रौशन होगा ,
अपना खून होगा , अपना वंश आगे  बढ़ेगा,
सच। मगर दर्द। .... 
दर्द होगा तभी तो ये होगा,
तो दर्द - दर्द अपना होता है 
दर्द का रिश्ता ही सच्चा होता है 
दर्द है तभी ख़ुशी है। 
ख़ुशी के लिए, हम क्यों मरते रहते हैं,
वो तो ख़ुद आ जायेगा।
दर्द के बारे में सोचो।  
दर्द संजोगो। 
वही अपना है 
रिश्ता है। 
सच्चा रिश्ता। 


आदित्य सिन्हा
04.04 2020

Friday, 3 April 2020

चुंबन (C for Chumban) - Kiss

चुंबन

C for Chumban - Kiss



(Hug & Kiss always go together. So this one is continuation from where I left my poem from A - Aingan. Read this in continuation with Alingan to enjoy more. )

दैविक ज्योति लागयो,
रच्यो प्रेम ते डोर,
गुंजत ब्रह्म तरंग,
संग सुरभित लय मंद।  

मंद चल्यो मोहे हाथ,
मखमल स्पर्श समात, 
झुकल चेहरा तब उठ्यो,
जड्यो तयों मोहे नैन ,  

नैना संग नैन बतियाओ,
मोई बंधन बने जडन्त, 
उइ अंग संग अंग समायो,
पिघलो कामुक आह संग।  

आह संग  दउरत सांस, 
मोइ गर्दन हौले झुकाए,
उइ एड़ी पर तब चढ़्यो ,
पहुँचल तब जुदा होईल पंखुड़िया तक। 

पंखुड़िया जुदा तब मिल्यो,
जड्यो चुम्बन संग मीत,
उई आनन्द संग खिल्यो, 
परिपूर्ण अउर परितृप्त। 

परितृप्त दोउ भै तब शांत,
जड़ चेतन समाय इक संग,
एक चुंबन संग चिरकालिक,
सदैव हुए संग प्रफुल्लित। 


आदित्य सिन्हा
03.04.2020

Thursday, 2 April 2020

बेवफा ऑंसू ( B for Bewafa Aansoo)

बेवफा ऑंसू




नम होती हैं आँखे,
जब दिल गम से रोता,
निर्झर तब भी बरसते , 
जब तन झूम के गाता।

कैसे तुम्हे पहचानूँ, 
कोने से तुम जब झल्को,
कैसे मैं ये जानूँ ,
रंग तुम्हारे है कैसा।   

न तुम पड़ते फीका,
जब पहाड़ गम का गिड़ता,
जीवन से ज्यों वो जाता,
और तुम दुःख से  रोते।   

गर ख़ुशी का मौका भी होता,
और शुभ समाचार  पिरोता,
मूसलाधार तब भी बहते,
और मीठा फिर भी न चखता।  

न ही सर्द  से तुम जड़ते,
गर अँधेरे में रूह कांपे,
न ही खून संग तुम खौलो,
जब आक्रोश करे तरंग,

आंखें खुली हो या बंद,
दिल डूबे या करे मृदंग 
तुम बरसो सहज समरंग,
विलीन अपने रंग के संग। 

तब भी जब तन हो संग,
सांसे गर्म और नब्ज हो कंप,
तुम संग करो भ्रमण,
और रिसे लोचन कण कण,

बेवफा तू ऐ ऑंसू ,
बता दे कैसे मैं जानूं ,
कहाँ की तेरी उद्गम,
कैसे किये तूने नैन नम। 

आदित्य  सिन्हा
02. 04  2020 

Wednesday, 1 April 2020

आलिंगन

 आलिंगन  ( A for Alingan )




    #AtoZChallenge 2020 Blogging from A to Z Challenge letter A

मोहे फइलत दोउ बाँह, 
समात उस चहुंओर,   
दिल होत दिल ऊपर ,
परस्पर रचत नवतरंग,

तरंग मधुर सुसंगत,
होत पृष्ठ दाब नर्म, 
नैना नैन चुराए ,
अंक घुलत कुम्हलाये,

कुम्हलात समुच्य निकाय,  
अउर दोउ भाव गरमाये,
अश्रु बहत निर्झर,
धोऊ कटु कथनाये ,

कथन गढ़े नव नूतन, 
जब दोउ स्वतः जड़ाये ,
अउर दोउ रहे गुंथित
शीतल सशक्त प्रफुल्लाये , 

प्रफुल्लित तब हम होए ,
बैरी बने सखाये ,
इक छुद्र नगण्य आलिंगन,
रचे नव मार्ग देवाय। 

आदित्य सिंहा 
01.04.2020