Sunday 10 March 2013

सृजन


सृजन 





ये संसार है परसपर नारी का योगदान, 
निरंतर करें हम इनका सम्मान, 
मत भूलें ये उनकी है सहर्ष बलिदान,
हमें जो वो देती हैं करने को अभिमान !

जन्म दे वह  मातृत्व है सिखलाती,
हर मोड़ पर त्याग  है कर जाती,
चरम पर लहराता योवन को दे चुनौती ,
हमें है इस जग से अवलोकिक करवाती!

सूनी से आँगन में नन्ही किलकारी जगाती, 
तोतली सी बोली में हमें प्रधान वह बनाती,
कच्चे धागे के बन्धन में विश्वास सिखलाती,
वक़्त पड़े तो बाग़ डोर भी है वो थामती!

अलसाती सुबह में अंगराईयां वह भर जाती,
आवारा मन को प्रतन्चाया पर कर जाती,
खुश्क सन्ध्या में सर्द समीर का एहसास कराती,
काली रातों में भी चांदनी से पहचान  वह करवाती!

सात फेरों  को  परम मान वो सब त्याग है कर जाती,
जन्म के बन्धन परे छोड़, पराया आँगन हर्श से है अपनाती,
कल की नन्ही छांव वो,  चंद वचन में नया संसार बनाती, 
अपना कल त्याग कर, हम़ारा कल को वो है संव़ारती! 

कमजोर  नहीं, वह मूरत है निरंतर बलिदान की, 
समर्पित वो अपनों को, संकल्पित  है वचनों की,
हर मोर पर साथ देती,  समुंदर है आलोकिक प्यार की,  
भावना के नर्म दरिया की, सृजन है वो इस संसार की!


आदित्य सिन्हा 
धर्मशाला 

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