अकेले होते तन्हा नहीं हम,
तन्हाई में खुद से जब मिलते,
उठते गिरते इस जीवन के,
पथ हम संग सहज कर लेते।
हर कोने में कुछ पन्ने बिखरे,
दीवारों से तसवीरें लुढ़कते,
गुजले पन्नों के लुप्त लकीरें ,
लटकती तस्वीरों पे धुल की चादरें,
आँखों से बहते दो बूंद सहस,
धूमिल तस्वीरें नव चेतन करते,
उन पन्नों में उलझे अफसाने,
सुलझाते व्यथाएँ, बनाते तराने,
अकेले होते तन्हा नहीं हम,
तन्हाई में खुद से जब मिलते,
उठते गिरते इस जीवन के,
पथ हम संग सहज कर लेते।
तन्हा जीवन, कोरा दिल ,
फिर दिल पे दस्तक हर पल ,
कभी उड़ती ज़ुल्फें, कभी चन्दन बदन,
काले नैन, कुछ लरजता यौवन,
दिल की धड़कन, उठते बैठते,
बंद आँखें और उन्मुक्त मन,
तारें मिलते फिर करता चयन,
मिलते सुर बनते सरगम।
अकेले होते तन्हा नहीं हम,
तन्हाई में खुद से जब मिलते,
उठते गिरते इस जीवन के,
पथ हम संग सहज कर लेते।
होता कुंठित जहन, या पीड़ा दफ़न,
अनजाने सवाल या विचलित मन,
ख़ुशी के होते झूमते मौसम,
या गौरव से हर्षित पलछीन,
अधीर रूह मिलती खुद से,
ढूंढ एकान्त, दूर जगत में ,
आलिंगन करता मन फिर तन से,
खोज रहस्य तरुणित हो जाता।
अकेले होते तन्हा नहीं हम,
तन्हाई में खुद से जब मिलते,
उठते गिरते इस जीवन के,
पथ हम संग कर लेते।
28. 01 2015
अलीगढ़
(यह कविता इंडीब्लॉग के उन्चासवें इंडिस्पायर विषय #solitude से प्रेरित है )
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