बेवफा ऑंसू
नम होती हैं आँखे,
जब दिल गम से रोता,
निर्झर तब भी बरसते ,
जब तन झूम के गाता।
कैसे तुम्हे पहचानूँ,
कोने से तुम जब झल्को,
कैसे मैं ये जानूँ ,
रंग तुम्हारे है कैसा।
न तुम पड़ते फीका,
जब पहाड़ गम का गिड़ता,
जीवन से ज्यों वो जाता,
और तुम दुःख से रोते।
गर ख़ुशी का मौका भी होता,
और शुभ समाचार पिरोता,
मूसलाधार तब भी बहते,
और मीठा फिर भी न चखता।
न ही सर्द से तुम जड़ते,
गर अँधेरे में रूह कांपे,
न ही खून संग तुम खौलो,
जब आक्रोश करे तरंग,
आंखें खुली हो या बंद,
दिल डूबे या करे मृदंग
तुम बरसो सहज समरंग,
विलीन अपने रंग के संग।
तब भी जब तन हो संग,
सांसे गर्म और नब्ज हो कंप,
तुम संग करो भ्रमण,
और रिसे लोचन कण कण,
बेवफा तू ऐ ऑंसू ,
बता दे कैसे मैं जानूं ,
कहाँ की तेरी उद्गम,
कैसे किये तूने नैन नम।
आदित्य सिन्हा
02. 04 2020
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