Wednesday, 28 January 2015

मैं और मेरी तन्हाई

मैं और मेरी तन्हाई 



मैं और मेरी तन्हाई,
दोनोँ का है गहरा साथ,
ख़ुशी में हैं दामन फैलाते,
गम में भी थामते हाथ.

रात होती गर लम्बी शीत की,
गर्म रखते ख्वाब मीत से ,
उबलते उजले गृष्म में भी , 
ठंडक देते भुनते मन को।  

मैं और मेरी तन्हाई,
दोनोँ का है गहरा साथ,
ख़ुशी में हैं दामन फैलाते,
गम में भी थामते हाथ। 

दर्द हो गर गहरे चोट से,
वक्त के ये लेप लगाते,
आनंदित प्रफुल्लित मन कर,
बार बार जीवंत कर जाते। 

मैं और मेरी तन्हाई,
दोनोँ का है गहरा साथ,
ख़ुशी में हैं दामन फैलाते,
गम में भी थामते हाथ।

टूट के गर बिखरे तिल-तिल,
दिल को दिल की बात बताते, 
नव मन तरूण तन कर,
उठ कर नई राह चलाते। 

मैं और मेरी तन्हाई,
दोनोँ का है गहरा साथ,
ख़ुशी में हैं दामन फैलाते,
गम में भी थामते हाथ।
  

आदित्य सिन्हा 
28 . 01 . 2015 
अलीगढ़ 

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