जीना सीख लिया
जरा सी आहट जो होती फ़िज़ां में,
मायूस चेहरे पे हम नकाब चढ़ा लेते,
होठों पे थिरका एक खोखली मुस्कान,
उठा सर दो कदम हम और चल लेते,
उनके जाने ने हमें जीना जो सीखाया,
ग़मों को घोल हम हर ज़हर हैं पी लेते।
वो जो चेहरा था फूलों सा कभी हमारा,
अब छुपा कर पलकों में बसा हम रखते,
आँसू भी गर निकले कभी महफ़िल में,
खुशबू -ए-अर्क में भी वो ज़ाहिर नहीं होते,
उनके जाने ने हमें जीना जो सीखाया,
नर्म होठों से जिनके चलती थी सांसें,
सदा वो अब रखते जलते लबों को,
लहू भी जो उभरे कभी दरारों पे,
जुबां को फेर हम लाली बना लेते ,
उनके जाने ने हमें जीना जो सीखाया,
हर रात देती हैं साथ अब वो ख्वाब बन के,
नींदों में भी कभी नाम न आये उनकी,
हर सुबह खुदा से हम यही अर्ज़ हैं करते,
उनके जाने ने हमें जीना जो सीखाया,
ग़मों को घोल हम हर ज़हर हैं पी लेते।
एक नाम जो जुड़ा उनसे अनजाने में,
मिली आयाम, खुद को भूल गया मैं ,
उनके जाने के बाद भी न कह सकूँ बेवफा मैं ,
इसलिए हूँ ज़िंदा और जीना सीख लिया मैं ,
उनके जाने ने हमें जीना जो सीखाया,
अब छुपा कर पलकों में बसा हम रखते,
आँसू भी गर निकले कभी महफ़िल में,
खुशबू -ए-अर्क में भी वो ज़ाहिर नहीं होते,
उनके जाने ने हमें जीना जो सीखाया,
ग़मों को घोल हम हर ज़हर हैं पी लेते।
नर्म होठों से जिनके चलती थी सांसें,
सदा वो अब रखते जलते लबों को,
लहू भी जो उभरे कभी दरारों पे,
जुबां को फेर हम लाली बना लेते ,
उनके जाने ने हमें जीना जो सीखाया,
ग़मों को घोल हम हर ज़हर हैं पी लेते।
कोरे दिल पे कभी लिखी कहानी जिनकी, हर रात देती हैं साथ अब वो ख्वाब बन के,
नींदों में भी कभी नाम न आये उनकी,
हर सुबह खुदा से हम यही अर्ज़ हैं करते,
उनके जाने ने हमें जीना जो सीखाया,
ग़मों को घोल हम हर ज़हर हैं पी लेते।
एक नाम जो जुड़ा उनसे अनजाने में,
मिली आयाम, खुद को भूल गया मैं ,
उनके जाने के बाद भी न कह सकूँ बेवफा मैं ,
इसलिए हूँ ज़िंदा और जीना सीख लिया मैं ,
उनके जाने ने हमें जीना जो सीखाया,
ग़मों को घोल हम हर ज़हर हैं पी लेते।
आदित्य सिन्हा
16 . 01. 2015
अलीगढ़
16 . 01. 2015
अलीगढ़
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