Saturday 20 December 2014

करुण वंदना



करुण वंदना 




माँ! ये सब चाचू के जैसे ही तो हैँ,
फिर क्यूँ हमें घेरे हैं, धमकाए हैं,
तुम तो कहती थी इनके तरह बनना है,
मगर ये तो अब्दुल्लाह पर भी गोलियां बरसाए हैं ,
माँ ये सब चाचू के जैसे ही तो हैँ,
फिर क्यूँ हमें घेरे हैं धमकाए हैं,

माँ, ये कह रहे हैं मैं तुम्हे अब न देख पायूँगा,

क्यूँ ? क्यूँ माँ ? आज तो मैं स्कूल भी आया हूँ,
कोई बदमाशी भी नहीं की है,
फिर क्यूँ हमें ये सताए हैं, डराये हैं,
माँ ये सब चाचू के जैसे ही तो हैँ,
फिर क्यूँ ये तेरी आवाज़ सुनने को तरसाये हैं?

अरे! देखो न माँ ये कहते हैं हमें गोलियां खानी पड़ेगी ,

क्यूँ ? क्यूँ माँ ? हम तो टिफ़िन लाये हैं,
हमें साथ खाना है, इंतज़ार में दीदी है, भइया है,
फिर क्यों ये गोलियाँ बरसा रहे हैं,
सारे बच्चों को रुला रहे हैं,
माँ ये सब चाचू के जैसे ही तो हैं,
फ़िर क्यूँ हमें ये मारें हैं, हमारी बात ठुकराये हैं।

माँ! ये तो सच में सब को मार रहे हैं,      

क्यूँ ? क्यूँ माँ ? वो देखो अब न बहन है, न भाई है,
खून में सने देह हैं, सन्नाटे में स्तब्ध आवाज़ें हैं,
बिखरे बस्ते हैं ,  सूनी ज़िंदगियाँ हैं,
पापा से कहना अब मुझे लेने ना आएं ,
उनका सहारा था, उनको टूटता नहीं देख पाउँगा,
माँ ये सब चाचू के जैसे ही तो थे ,
फ़िर क्यूँ हमें मार गए, अपनों के सहारे बिखेर गए ।

माँ, अब क्या कहूँ, तुमसे दूर ये आखिर कर ही दिए,

क्यूँ ? क्यूँ माँ, अब गूंजता सिर्फ ये सवाल है?
तुम फिर भी हौसला मत खोना माँ,
सबको खो कर तुम मत रोना माँ,
मेरे खिलौने, मेरी किताबें, मेरे कपड़े मत संजोगना माँ ,
सुनी आँखों से मेरा रास्ता मत देखना माँ ,
चौराहे पे खेलते मेरे दोस्तों को स्कूल जाने से रोकना माँ ,
माँ, क्या पता कल ये सब चाचू फिर आएं ,
फ़िर हमें ये मारें, हमारी गुहार फिर ठुकराये।

ओह माँ ! वो कैसे तुम्हारी गोद सूनी कर गए ,
क्यूँ माँ,  इसका किसी के पास जवाब नहीं ?
माँ, मेरी तस्वीर को अब इनका आईना मान,
यादों में हमें ज़िंदा रखना इस कड़वे सच के साथ,
फूल भी मत चढ़ाना जब तक वो सींचते रहे लहू के हाथ,
नन्हे भैया को कोख़ में ही रखना महफूज़, बाहर न लाना,
माँ, नहीं पता किस शक्ल में ये सब चाचू फिर आ जाएं ,
फ़िर हमें ये मारें, तुम्हारी  गोद फिर छलनी कर जाएँ।

माँ मैं अब कभी वापस नहीं आ पायूँगा,

माँ मैं अब कभी वापस नहीं आऊंगा,
माँ ये सब के जैसे ही तो हैँ,
फिर कैसे जानूँ कौन अपने, कौन पराये हैं ,
किस सँभालते हाथ में फिर बारूद आ जाये,
झुकते कन्धों पर फिर शवों का भार दे जाएँ,
माँ हमें अब कभी वापस मत लाना,
सूनी गोद का विशाप फिर भी सह लेना ,
उजड़े गर कोख फिर,  तुम्हे हौसला नहीं दे पाउँगा,
माँ मैं अब कभी वापस नहीं आऊंगा,
माँ मैं अब कभी वापस नहीं आऊंगा,

आदित्य सिन्हा,

20.12.2014
अलीगढ


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